Tuesday, September 18, 2018

प्रेम पत्र

प्रिय मित्र
  मैंने उस दिन जब घर जाने की बात कही थी तो तुम्हारी आँखों में आंशु छलक गये थे। मुझे याद है, आज भी जब हम पहली बार मिले थे। मैं और मेरा दोस्त, दोनों लोग आए थे। मेरे दोस्त का व्यवहार तुम्हे अच्छा नही लगा। वह थोड़ा अय्यास टाइप का है। मालूम है कि वह दिल्ली में रहता है और दिल्ली वाले बस लड़की देखी क्या और बघारने लगे शेखी .......। अब तो वह चला जा चुका है दिल्ली।
  जानती हो! दिल्ली न जाने के लिए उसने कितना बहाना किया। दिल्ली न जाना तो बहाना था, वास्तव में वह तुमसे मिलने चाहता था।
   
       मुझे अफ़सोस है पहले दिन का क्योंकि मैं उस दिन अपने दोस्त के कारण तुमसे बात भी न कर पाया। लेकिन तुम मुझे पहली ही नज़र में पसन्द आ गई थी। उस वक्त मेरे पास यह बोलने किए शब्द नही थे। मेरे पास शब्द तो आज भी नही है तुम्हारी बातें लिखने के लिए ।
  तुम्हारे अंदर की खूबियां लिखना यदि आज शुरू कर दूँ तो एक  उपन्यास बन जाएगा। मजाक में मत लेना, ये खूबियां तो वास्तव में है तुम्हारे अंदर।
  वैसे मैं तो काम के बहाने तुमसे मिलने आता था। लेकिन अफ़सोस की तुम मुझे समझ न सकी। एक भी मिनट तुमने मुझसे बात न ही की। और उस दिन जब मैं तुमसे मिलने आखिरी बार आया तो भी तुम नही आई। जबकि मैंने बताया था कि कल मैं घर चला जाऊंगा। जब तुम नही मिली तो मुझे लगा की तुम मेरी दोस्त थी कुछ पल के लिए । इसीलिए मैंने आगे कुछ न कहा भी नही। और मेरा प्यार दो पल की दोस्ती में बदल गया। मुझे अफ़सोस नही है और तुम नही अफ़सोस मत करना । मैं तो खुश हूं तुम्हारा जैसा  दोस्त पाकर।
   मुझे दोस्त तो कुछ पल के लिए कई मिले। कोई रेलवे पर मिला , कोई बस में, सबसे ज्यादा तो हमारे स्कूल में मिले थे। पर तुम उन सब से बिलकुल भिन्न टथीं। तुम्हारी कोमल मधुर आवाज मृदु आवाज किसी को भी अपना बनाने के लिए काफी थी।
   तुम दूसरी लड़कियों से भिन्न थीं। तुम्हारे गुस्सा होने में भी अपनापन था। तुम्हारी बातें भी बिलकुल ही दिल को छू जाने योग्य थी। तुम्हारी कुछ बातें मुझे आज भी याद है। और मालूम है  तुम्हारे खिंचे हुए वे फोटो मेरे मोबाइल में आज भी है। मैंने तो उस मोबाइल को भी नही बेचा है। तुम यदि यहां आकर साथ में एक चाय पियो तो मेरे दिल को सुकुं मिल जायेगा। इसलिए मेरा पत्र मिलते ही तुम पहली ट्रेन आ जाना ।
    मुझे याद है जब मैं वापस घर जा रहा था तो तुम बहुत रोई लेकिन मेरे सामने नही। मेरे वापस जाते समय मौसम भी रोया था।
   कितना शांत मौसम था, पर मेरे चलते ही, जब मैं साइकिल से अपने कमरे पर जा रहा था। खूब तेज से आंधियां उठी। मेरी साइकिल आगे बढ़ ही नही रही थी। मानो हवाएं मुझे रोकने की कोशिश कर रही थी। बादल भी रोया, पर मुझे थोड़ी जल्दी थी। इसलिए मैं रुका भी नही । भीगते हुए ही चला गया। मेरे घर पहुचते ही मौसम भी रुक गया। घर पहुँच कर मुझे दुःख हुआ आखिरी बार तुमसे न मिलने का।
अब पता नही तुम मुझसे मिलोगी या नही।
  मेरे इस पत्र को पढ़कर तुम दुःखी मत होना। खुश रहना हमेशा की भांति। समय मिला तो मैं खुद ही तुमसे मिलने आऊंगा।
   
एक बात याद रखना "तुम्हारी खुशी में ही हमारी ख़ुशी है "

  
               तुम्हारा प्रिय



साभार :
प्यार : एक अनमोल रत्न

लेखक : पंकज कुमार

Scientist Pankaj

Today in Science: Humans think unbelievably slowly

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