Wednesday, September 19, 2018

मेरा संघर्ष

मैं आज जो लिख रहा हूँ। ये मैं किसी विद्यालय की बुराई नही
कर रहा हूं। मैं अधिकतर स्कूलों की सच्चाई लाने की कोशिश कर रहा हूं। मैं यहां बताना छह रहा हूं कि इन स्कूल कॉलेज वाले  सीधे साधे लोगों को गुमराह करके उनसे खूब पैसे वसूलते हैं। कुछ दबंग लोगों ने  कॉलेजों को एक धंधा बना लिया है।
   मैंने लगभग एक साल लखनऊ में पढाई की। लखनऊ में अधिकतर स्कूल फर्जी है और जो फर्जी नही हैं वे सीधे साढ़े लोगों को गुमराह करते है। वे समझते हैं कि स्कूलों में पढ़ाई नही होती ब बल्कि वहाँ पढाई की बिक्री होती है। ये लोग स्कूलों को धंधा समझते हैं। यहां पर पढ़कर निकलने वाला निर्बल और असहाय हो जाता है।
इस तरह के संस्थान  से पढ़कर निकला स्टूडेंट अपने आप को ऐसा महसूस करता है कि जैसे उसका खून किसी जंगली जानवर ने चूस लिया हो और उसे रक्त रहित कर गया हो।
  इस हालात में उसे कैसा महसूस हो रहा होगा, यह कौन जान सकता है? क्या आपमें से से किसी के साथ ऐसा हुआ है है? 
ठीक ऐसा ही मेरे साथ भी हुआ।
  मैं उस समय इतना निर्बल हो चुका था जितना कि आल सोच नही सकते। मुझे तब दूसरे संस्थानों से भी डर लग रहा था। पर मैं यह सोचकर शांत हो जाता की जो होता है वो अच्छे के लिए होता है।

पहली बात ये की  किसी गरीब का नाम किसी अच्छे संसथान में लिखता नही। यदि लिख गया तो सौ में से लगभग 20 से 25 केया लिखा बाकी......।
  हाँ चलो! यदि कैसे भी लिख गया तो फीस के नाम पर
ये शुल्क , वो शुल्क, केक्रीड़ा शुल्क, फैन शुल्क, लैब शुल्क, छात्रावास शुल्क ........।
पता चला एक दिन भी लैब गये नही, छात्रावास का तो पता नही, पंखे और खेलों का तो ......।
शिक्षण का तो भगवान जाने...।
लड़के ने 15 तारीख को फ़ीस जमा नही की तो नाम कटा, अब उसकी फीस दो। नाम फिर से लिखेगा। अब क्या हुआ लड़का परेशान, घर वाले घर बेचकर झोपड़ पट्टी में और पढाई खा गई.....।
  अंततः लड़के ने पढाई छोड़ दी। स्कूल कॉलेज के नाम पर जलन।
  अब लड़का अनेक सामाजिक आलोचनाओं से परेशान हो कर कुरीतियाँ अपनाने लगा। व्यसनों से युक्त तनाव से युक्त।

     समाज का तो काम है दोषारोपण और आलोचना करना है ही। अब तुम क्यों परेशान हो रहे हो।



साभार :
मेरा संघर्ष : एक आत्मकथा
लेखक - पंकज कुमार

हिम्मत

वैसे तो मैं बहुत ही कलेजेदार हूँ
पर एक बात में
बिलकुल ही बेकार हूँ
स्वीकार करता हूँ मैं सबके सामने
लड़कियों के मामले में
मैं बिलकुल ही कच्चा हूँ
बात करने में मैं बेहद ही डरता हूँ
हालांकि कई दोस्तों ने
समझाया बुझाया
कि लड़कियां मन की कच्ची होती हैं
बातों में पक्की होती हैं
बस यही बात मेरी समझ में आ गई
मेरी बुद्धि ही चकरा गई
सोचा ट्राई करूँ एक बार
पर डर रहा था मैं
कहीं सैंडिल न पड़ जाए मुझ पर कई बार
खैर
मन पक्का किया
सोचा बोल दूँ मैं मन की बात
अपने मनप्रीत से
शुरू में डरा फिर बोला
यूँ सोचकर
जब मुझे मेरे मनप्रीत का
उत्तर मिला
मैं हैरान और हतप्रभ रह गया
उसके दिल की बातों को
गहराई में जाकर देखा
हंसपड़ा मैं
सोच कर सब
कि मेरी ही बातों को
यूँ सतरँगी धनुष में
जोड़कर, मोतियो को पिरोकर
मुझे ही वापस कर दिया गया
प्यार भरी उन नज़रों को
मैं हैरानी से देख रहा था
मन ही मन कुछ सोच रहा था
आंख खुली तो
सुबह हुई थी चिड़ियों की चहचाहट से
हंस पड़ा मैं सोचकर
जो बातें सपने में देखी थी
अक्सर सच होती है
सुबह स्वप्न की बाते
सोचकर यह मैं
भविष्य में खो गया

:   पंकज कुमार

Tuesday, September 18, 2018

हिम्मत

वैसे तो मैं बहुत ही कलेजेदार हूँ
पर एक बात में
बिलकुल ही बेकार हूँ
स्वीकार करता हूँ मैं सबके सामने
लड़कियों के मामले में
मैं बिलकुल ही कच्चा हूँ
बात करने में मैं बेहद ही डरता हूँ
हालांकि कई दोस्तों ने
समझाया बुझाया
कि लड़कियां मन की कच्ची होती हैं
बातों में पक्की होती हैं
बस यही बात मेरी समझ में आ गई
मेरी बुद्धि ही चकरा गई
सोचा ट्राई करूँ एक बार
पर डर रहा था मैं
कहीं सैंडिल न पड़ जाए मुझ पर कई बार
खैर
मन पक्का किया
सोचा बोल दूँ मैं मन की बात
अपने मनप्रीत से
शुरू में डरा फिर बोला
यूँ सोचकर
जब मुझे मेरे मनप्रीत का
उत्तर मिला
मैं हैरान और हतप्रभ रह गया
उसके दिल की बातों को
गहराई में जाकर देखा
हंसपड़ा मैं
सोच कर सब
कि मेरी ही बातों को
यूँ सतरँगी धनुष में
जोड़कर, मोतियो को पिरोकर
मुझे ही वापस कर दिया गया
प्यार भरी उन नज़रों को
मैं हैरानी से देख रहा था
मन ही मन कुछ सोच रहा था
आंख खुली तो
सुबह हुई थी चिड़ियों की चहचाहट से
हंस पड़ा मैं सोचकर
जो बातें सपने में देखी थी
अक्सर सच होती है
सुबह स्वप्न की बाते
सोचकर यह मैं
भविष्य में खो गया

:   पंकज कुमार

प्रेम पत्र

प्रिय मित्र
  मैंने उस दिन जब घर जाने की बात कही थी तो तुम्हारी आँखों में आंशु छलक गये थे। मुझे याद है, आज भी जब हम पहली बार मिले थे। मैं और मेरा दोस्त, दोनों लोग आए थे। मेरे दोस्त का व्यवहार तुम्हे अच्छा नही लगा। वह थोड़ा अय्यास टाइप का है। मालूम है कि वह दिल्ली में रहता है और दिल्ली वाले बस लड़की देखी क्या और बघारने लगे शेखी .......। अब तो वह चला जा चुका है दिल्ली।
  जानती हो! दिल्ली न जाने के लिए उसने कितना बहाना किया। दिल्ली न जाना तो बहाना था, वास्तव में वह तुमसे मिलने चाहता था।
   
       मुझे अफ़सोस है पहले दिन का क्योंकि मैं उस दिन अपने दोस्त के कारण तुमसे बात भी न कर पाया। लेकिन तुम मुझे पहली ही नज़र में पसन्द आ गई थी। उस वक्त मेरे पास यह बोलने किए शब्द नही थे। मेरे पास शब्द तो आज भी नही है तुम्हारी बातें लिखने के लिए ।
  तुम्हारे अंदर की खूबियां लिखना यदि आज शुरू कर दूँ तो एक  उपन्यास बन जाएगा। मजाक में मत लेना, ये खूबियां तो वास्तव में है तुम्हारे अंदर।
  वैसे मैं तो काम के बहाने तुमसे मिलने आता था। लेकिन अफ़सोस की तुम मुझे समझ न सकी। एक भी मिनट तुमने मुझसे बात न ही की। और उस दिन जब मैं तुमसे मिलने आखिरी बार आया तो भी तुम नही आई। जबकि मैंने बताया था कि कल मैं घर चला जाऊंगा। जब तुम नही मिली तो मुझे लगा की तुम मेरी दोस्त थी कुछ पल के लिए । इसीलिए मैंने आगे कुछ न कहा भी नही। और मेरा प्यार दो पल की दोस्ती में बदल गया। मुझे अफ़सोस नही है और तुम नही अफ़सोस मत करना । मैं तो खुश हूं तुम्हारा जैसा  दोस्त पाकर।
   मुझे दोस्त तो कुछ पल के लिए कई मिले। कोई रेलवे पर मिला , कोई बस में, सबसे ज्यादा तो हमारे स्कूल में मिले थे। पर तुम उन सब से बिलकुल भिन्न टथीं। तुम्हारी कोमल मधुर आवाज मृदु आवाज किसी को भी अपना बनाने के लिए काफी थी।
   तुम दूसरी लड़कियों से भिन्न थीं। तुम्हारे गुस्सा होने में भी अपनापन था। तुम्हारी बातें भी बिलकुल ही दिल को छू जाने योग्य थी। तुम्हारी कुछ बातें मुझे आज भी याद है। और मालूम है  तुम्हारे खिंचे हुए वे फोटो मेरे मोबाइल में आज भी है। मैंने तो उस मोबाइल को भी नही बेचा है। तुम यदि यहां आकर साथ में एक चाय पियो तो मेरे दिल को सुकुं मिल जायेगा। इसलिए मेरा पत्र मिलते ही तुम पहली ट्रेन आ जाना ।
    मुझे याद है जब मैं वापस घर जा रहा था तो तुम बहुत रोई लेकिन मेरे सामने नही। मेरे वापस जाते समय मौसम भी रोया था।
   कितना शांत मौसम था, पर मेरे चलते ही, जब मैं साइकिल से अपने कमरे पर जा रहा था। खूब तेज से आंधियां उठी। मेरी साइकिल आगे बढ़ ही नही रही थी। मानो हवाएं मुझे रोकने की कोशिश कर रही थी। बादल भी रोया, पर मुझे थोड़ी जल्दी थी। इसलिए मैं रुका भी नही । भीगते हुए ही चला गया। मेरे घर पहुचते ही मौसम भी रुक गया। घर पहुँच कर मुझे दुःख हुआ आखिरी बार तुमसे न मिलने का।
अब पता नही तुम मुझसे मिलोगी या नही।
  मेरे इस पत्र को पढ़कर तुम दुःखी मत होना। खुश रहना हमेशा की भांति। समय मिला तो मैं खुद ही तुमसे मिलने आऊंगा।
   
एक बात याद रखना "तुम्हारी खुशी में ही हमारी ख़ुशी है "

  
               तुम्हारा प्रिय



साभार :
प्यार : एक अनमोल रत्न

लेखक : पंकज कुमार

Scientist Pankaj

Today in Science: Humans think unbelievably slowly

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